किसान किसी वैज्ञानिक से कम नहीं |

किसान किसी वैज्ञानिक से कम नहीं |

नमस्कार
आप ये ब्लॉग पढ़ रहे है तो मैंने सोचा की मेरी गुजरात, आणंद की यात्रा की शुरुआत से पहले आपको अपने बारे में बताता चलूँ।
मेरा नाम स्पर्श सक्सेना है और मै नॉएडा का रहने वाला हूँ और संगीत से जुड़ा व्यक्ति हूँ साथ ही में आल इंडिया रेडियो – आकाशवाणी नई दिल्ली में भारत सरकार के लिए समाचार वाचक (News Anchor) और बिज़नेस एडिटर के तौर पर कार्यरत हूँ। बचपन में किताबों में पढ़ा था खेती, किसान और मिटटी के बारे मे और इसके बारे में जानने की इच्छा रही लेकिन कभी मौका नहीं मिला या यूँ कह लीजिये की कभी मैंने कोशिश नहीं की। मगर वो कहते है न की हर चीज़ का समय निश्चित है, तो मेरा जैविक खेती और किसानी के बारे जानने के सफर की शुरुआत ग्राम दिशा ट्रस्ट के माध्यम से हुई और ट्रस्ट के माध्यम से ही मुझे गुजरात, आणंद में भाईकाका कृषि केंद्र में श्री सर्वदमन पटेल जी के सानिध्य में एक कार्यशाला में भाग लेने का मौका मिला, जिसके लिए मै ट्रस्ट का हृदय से आभारी हूँ।

बात करे अब 4 दिन के सब्जी उत्पादन पर कार्यशाला की तो ये सफर शुरू हुआ दिल्ली से और ट्रैन पकड़ के मै पहुंच गया अहमदाबाद गुजरात। अहमदाबाद से आणंद जाना – वर्कशॉप में ही भाग ले रहीं एक और फार्मिंग का शौक रखने वाली शीतल जी के साथ हुआ। सुबह 5:30 बजे हलकी हलकी ठण्ड में सफर पर निकलना और सूर्योदय के साथ अंधकार को छटते देख मुझे यकीन हो गया की मै भी कुछ जीवन में अलग और नया सीखने जा रहा हूँ। इसी भरोसे के साथ हम आगे बड़े और हमारा आगमन हुआ भाईकाका कृषि केंद्र में।

हमारे पहुंचने के साथ ही हमारा स्वागत गरमा गरम चाय के साथ किया गया और सभी को उनके रूम्स और टेंट्स आवंटित किये गए। सबसे पहले हमे ले जाया गया उस खेत में जहाँ फसल लगभग तैयार होने को थी और वहां पहली बार हमारी मुलाक़ात हुई सर्वदमन भाई पटेल जी से। उन्होंने बताया की एक किसान हर सुबह अपनी फसल को जांचने और खेत को देखने आता है ये सबसे ज़रूरी काम होता है। आप ही की तरह मेरा भी सवाल था की ऐसा क्यों हर रोज़ क्यों, तो जवाब आया की ये इसलिए की अगर किसान की महीनो की म्हणत में कोई भी दिक्कत होगी तो उसे रोज़ की जांच में दिख जायेगा और उसे वो समय रहते ठीक कर सकता है।

उसके बाद सभी प्रतिभागियों (participants) का परिचय एक दूसरे से कराया गया। अधिकतर लोग फार्मिंग बैकग्राउंड से ही थे या फिर उसी क्षेत्र में काम कर रहे थे और ये सुनके मेरे मन में आया की कहीं मै गलत तो नहीं आ गया क्यूंकि वहां सभी लोग पहले से बहुत कुछ जानते थे। लेकिन ये उन सभी लोगों और श्री पटेल का बड़प्पन था की मुझे ये महसूस नहीं होने दिया कभी।

यहाँ हमारा दिन दो भाग में था, जिसमे दिन की आधे हिस्से में हमे थ्योरी और वीडियो माध्यम से बताया जाता और दूसरे भाग में प्रैक्टिकल कराया जाता था। शुरुआत में हमे सब्ज़िया उगाने की कला एवं विज्ञान के बारे और माइक्रो ग्रीन्स तथा नर्सरी मैनेजमेंट के बारे में वीडियो माध्यम से सिखाया गया। उसके बाद हमे खेतो में प्रैक्टिकल के लिए ले जाया गया, जो देखने और करने में कठिन तो था लेकिन उसके साथ उतना ही रोमांचक भी था। हमने वहां नर्सरी बेड्स का निर्माण करना सीखा और ग्रीन मैन्योर के बारे में जाना साथ ही में सूखे पत्तो से कैसे खाद बनती है और खाद को किस तरह छानना है ये देखा और किया। अब बारी थी इसके बाद हमारे द्वारा तैयार किये बेड्स पर बीज डालने की और पानी देने की।

मुझे लगा बीज लगाना एक बेहद आसान काम रहता होगा लेकिन मै गलत था। ये एक बहुत ही महीन और ध्यान से करने वाला काम है , हमें हर बीज के लिए अलग अलग गैप्स या स्पेसिंग छोड़नी होती है और उसके बाद उसको कितना पानी देना है कैसे देना है ये भी बहुत ज़रूरी था। इस पहले दिन में ही मुझे एक बात जो सबसे ज़्यादा महसूस हुई की किसान की मेहनत क्या होती होगी। हमने जो किया हालाँकि वो उसका आधा प्रतिशत भी नहीं होगा मगर उस पूरी रात मै इसी बारे में सोचता रहा।

बाकी दिनों में हमारी दूसरे दिन की ट्रेनिंग में हमे क्रॉप रोटेशन, ग्रीन मांयूरिंग और खेती के सिद्धांतो के बारे में बताया गय। दिन के दूसरे हिस्से में हमे सॉइल ब्लॉक बनाना सिखाया गया और कैसे उसके साथ काम करना है ये भी बताया गया। प्रैक्टिकल के दौरान जब हम सुनते है दुसरो को करते हुए देखते है तो अधिकतर ये काफी आसान दिख रहा होता है, लेकिन जब खुद करने की बारी आयी तो मालूम पड़ा की इतना भी आसान नहीं है जितना हम समझ रहे है। फिर बीज को उस सॉइल ब्लॉक में बोना और उसके बाद उसका ख्याल रखना ये एक नया अनुभव था जो आपके अंदर एक प्रेम भावना भी पैदा करता है।

तीसरे दिन में हमने किसानो से मुलाकात की और देखा की कैसे किस सब्ज़ी को काटा जाता है तैयार होने के बाद। क्या क्या बातों के वो ध्यान रखते है और भी कई तरह के सवाल जवाब हुए। इस दिन तक हमे सबको एक बात काफी ज़यादा महसूस हुई कि एक किसान किस किस बात का ख्याल करता है अपनी फसल उगाने के लिए और उसे अंतिम रूप देने के लिए जिससे की वो आपकी और मेरी थाली तक आ सके। एक बात है की किसान को समाज में वो इज़्ज़त कभी नहीं दी गयी, सही माईने में “किसान किसी वैज्ञानिक से कम नहीं “।

अब बारी आयी वर्कशॉप के अंतिम दिन और थोड़ा मायूस करने वाले दिन की क्यूंकि 4 दिन कब बीते हमे मालूम ही नहीं पड़ा। आखिरी दिन था तैयार हुई सब्ज़ियों को काट कर साफ़ करके पैक करने का जो अब बिकने के लिए बिलकुल तैयार हो चुकी थी। एक बीज बोना, फसल की देखभाल करना और फिर सही समय पर उसकी कटाई कर उसको ग्राहक तक बेचना, मानो कुछ बड़ा हासिल किया हो ऐसा उस समय महसूस हो रहा था। हालाँकि, किसान की मेहनत इससे कई ज़्यादा होती है मात्र चार दिन में किसानी नहीं सीखी जा सकती लेकिन इतना समझने के लिए काफी है की आपकी थाली में परोसे गए अन्न का एक एक दाना बहुत बहुमूल्य है। इसमें किसी की सिर्फ मेहनत ही नहीं उसकी भावना भी जुडी हुई है, मेरा आप सभी से यही एक आग्रह है की कृपाया कभी भी अन्न बर्बाद ना करे , जितना खाना हो उतना ही ले।

हमे इतना कुछ सीखने के लिए श्री सर्वदमन पटेल जी का बहुत धन्यवाद्। हमारे संगीत में गुरु जी कहा जाता है शिक्षक को और अपनी कला में जिसे महारत हासिल होती है उन्हें पंडित या उस्ताद लगा के सम्बोधित किया जाता है, तो ठीक वैसे ही हमारे जैविक खेती के गुणों को सीखने वाले गुरु, जो इस कला के महारती है, उनको हम अबसे पंडित सर्वदमन पटेल कहेंगे।

इन चार दिनों ने मुझे सिर्फ किसानी या किचन गार्डन और जैविक खेती ही नहीं बताई सिखाई। अगर आप सीखना चाहे तो इससे जीवन की भी बड़ी सीख ले सकते है की हर चीज़ का समय होता है और वो अपने समय से ही होगी। बस जो तरीका है आपका यानि की प्रोसेस वो सही होना चाहिए। ठीक यही किसानी का फार्मूला शेयर बाजार में भी लागू होता है – वो कैसे की आपको मिटटी की समझ और किस समय पर कौनसी फसल बोनी है ये रिसर्च करनी है जो की हुआ कंपनी चुनने का तरीका जहाँ आप पैसा लगाना चाहते है। फिर बीज डालिये यानी की पैसा लगाइये और फिर सबसे कठिन समय आता है देखभाल का जिसका शेयर बाजार में मतलब हुआ की उतार चढ़ाव से परेशां नहीं होना और धैर्य बनके रखना है और फिर जब सही समय आये तब कटाई कीजिये यानि की बेचने का समय।

नाही सिर्फ खेती और उससे जुडी बाते मगर कई तरह से जीवन को अलग चश्मे से देखने का नजरिया और तरह तरह की सीख मै साथ लेकर वापस गया। ये अनुभव सचमुच एक अलग सोच पैदा करता है और “ग्राम दिशा ट्रस्ट” का मै एक बार फिर से बहुत आभार व्यक्त करता हूँ।

जैविक खेती के ऊपर हमने कुछ सवाल सर्वदमन पटेल जी से किये थे जिसका वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध है।

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